Sunday, May 31, 2015

वो रात कुछ अजीब थी



वो रात कुछ अजीब थी,
कुछ यादों, कुछ बातों को समेटे हुए;
उन उमड़ते जज्बातों को थामे हुए,
उन अनगिनत लम्हों की कश्ती पर सवार I

वो रात कुछ अजीब थी,
जिसमें कुछ पल बीते, कुछ ठहर से गए I
कुछ यूँ गुजरे, के बस, गुज़र से गए-
कुछ यादों, कुछ बातों को समेटे हुए;
उन उमड़ते जज्बातों को थामे हुए,
उन अनगिनत लम्हों की कश्ती पर सवार I

वो रात कुछ अजीब थी,
जहाँ सन्नाटा था, वो दूर मुस्कुराता चाँद था,
और सन्नाटे को चीरती, बेकल लहरों थी-
कुछ यादों, कुछ बातों को समेटे हुए;
उन उमडते जज्बातों को थामे हुए,
उन अनगिनत लम्हों की कश्ती पर सवार I

वो रात कुछ अजीब थी,
जिसमें तुम थी, तुम्हारी बातें थी,
तुम्हारी खुश्बू थी, तुम्हारा साथ था;
जिसमे कुछ पल बीते, कुछ ठहर से गए;
कुछ यूँ गुजरे के बस, गुज़र से गए-
तुम्हारी यादों, तुम्हारी बातों को समेटे हुए;
उन उमडते जज्बातों को थामे हुए,
उन अनगिनत लम्हों की कश्ती पर सवार I

वो रात कुछ अज़ीब थी....


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