Sunday, March 25, 2012

उस गली का कुत्ता रोया था..


जब रंग बिरंगी बोतल ने
वोट तुम्हारा बदला था,
जब पेड़ पर लटके लोटन ने
देख तुम्हें रंग बदला था,
तब देश तुम्हारा सोया था;
मगर उस गली का कुत्ता ज़ोर ज़ोर से रोया था।

वो ग़रीब किसान का बेटा था;
था वो मा का एक सपूत
निडर, अभय, लड़ा वह युद्ध महान..
एक काफिर गोली ने जब भेदा उस सीने को,
बात कफ़न की आयी तब;
सबने खाया, सबने पचाया,
फिर खाया, फिर पचाया,
तब देश तुम्हारा सोया था;
मगर उस गली का कुत्ता रोया था.....।

कल गीदड़ की टोली ने नर्म मांस पर भूख अपनी मिटाई थी,
कल इसी सामज के ठेकेदारों ने फरमान अपना सुनाया था,
कल यहाँ की बेटी ने अपनी जान गवां दी थी
तब देश तुम्हारा सोया था,
मगर उस गली का कुत्ता रोया था....।

पंडित चिढ़ा अज़ान से,
मुल्ले को मंदिर की घंटी न भाई।
बंदूकों और कट्टों ने,
रक्त की अविरल गंगा बहाई।
तब देश तुम्हारा सोया था,
मगर उस गली का कुत्ता जोर जोर से रोया था..।

भूखे नंगे जंगले में,
जब मिला एक खदान नया,
सिक्कों की झंकार पर बिका देश का सम्मान वहां,
मिटटी के सम्मान की खातिर,
धनुष उठे,
घर बार उजड़े,
रक्त की इस क्रांति में लोग जुड़े,
अपने बिछड़े..
तब देश तुम्हारा सोया था,
फिर भी उस गली का कुत्ता रोया था...।